हिंद की चादर के प्रकाशोत्सव में आजाद दिखे दिग्गज, भगवा-नारंगी रंग की पगड़ियों में नजर आया पक्ष-विपक्ष

 अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। श्री गुरु तेग बहादुर जी के प्रकाश उत्सव पर पानीपत में आयोजित धार्मिक समागम के दौरान तमाम राजनीतिक बेड़ियां ध्वस्त हो गई। भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के साथ-साथ विपक्षी दल कांग्रेस के अधिकतर विधायक धार्मिक समागम में पूरी आस्था के साथ शामिल हुए।

निर्दलीय विधायकों ने भी गुरु के दरबार में श्रद्धा के साथ मत्था टेका। मुख्यमंत्री मनोहर लाल से लेकर उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तक, सब नारंगी-भगवे रंग की पगड़ी में एकजुट नजर आ रहे थे। और तो और कांग्रेस विधायक गीता भुक्कल ने भी धार्मिक आस्था की प्रतीक भगवा-नारंगी पगड़ी पहनी हुई थी। हुड्डा अपनी पार्टी के डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ समागम में शामिल हुए, जबकि निर्दलीय विधायकों के प्रतिनिधि के रूप में रणजीत चौटाला, नयनपाल रावत, धर्मवीर गोंदर और रणधीर गोलन समेत तमाम विधायक समारोह में शामिल हुए।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने पार्टी संगठन का प्रतिनिधित्व किया तो सांसद संजय भाटिया, विधायक महीपाल ढांडा और प्रमोद विज समारोह में मेजबान की भूमिका में नजर आए।

खेल राज्य मंत्री संदीप सिंह और सीएम के अतिरिक्त प्रधान सचिव डा. अमित अग्रवाल ने धार्मिक समागम के आयोजन में चार चांद लगा दिए। देश के कोने-कोने से आई साध-संगत में गुरु साहिब के प्रकाश उत्सव में शामिल होकर आशीर्वाद ग्रहण किया।

श्री गुरुग्रंथ साहिब जी को पानीपत के पहली पातशाही से समागम स्थल तक खेल राज्य मंत्री संदीप सिंह परंपरा के अनुसार लेकर आए। कार्यक्रम में मुख्य मंच पर स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज और आनंदमूर्ति गुरुमां जैसी महान विभूतियों ने संगत को अपना शुभ संदेश दिया।

सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल ने शबद कीर्तन किया। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने गतके में हाथ आजमाए तो हर कोई देखता रह गया। उत्तराखंड के गवर्नर ले. जनरल गुरमित सिंह ने मुख्यमंत्री से विशेष मुलाकात की। सांसद संजय भाटिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संदेश पढ़कर सुनाया।

श्री गुरु तेग बहादुर जी को हिंद की चादर कहा जाता है। मुगल काल में हिंदू धर्म खतरे में था। मुस्लिम बादशाह औरंगजेब की धर्मांतरण की मुहिम उन दिनों जोरों पर थी। गुरु तेग बहादुर जी ने अपनी शहादत देकर सहमी जनता को जुल्म के खिलाफ खड़ा होना सिखाया था।


17वीं सदी के उस दौर में कश्मीरी हिंदू औरंगजेब के धर्मांतरण और अत्याचार से तंग आ चुके थे। तब 500 कश्मीरी ब्रह्मणों का जत्था गुरु तेग बहादुर जी के पास आनंदपुर साहिब पहुंचा। उनके नेता पंडित कृपा राम ने गुरु जी को औरंगजेब के अत्याचारों से अवगत कराया और कहा कि हमें धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जा रहा है।

धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर साहिब 10 जुलाई 1675 को चक्क नानकी (आनंदपुर साहिब) से भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुए। नवंबर 1675 में गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया गया।

गुरु जी ने औरंगजेब को यह चुनौती दी कि अगर उन्हें जिंदा इस्लाम कबूल करवा देंगे तो हिंदुस्तान के बाकी नागरिक इस्लाम कबूल कर लेंगे, लेकिन अगर वह उन्हें इस्लाम कबूल नहीं करवा पाए तो उन्हें वादा करना पड़ेगा कि उसके बाद हिंदुओं पर जबरदस्ती इस्लाम कबूल करने का दबाव नहीं डाला जाएगा।

महान गुरु ने नीचा नहीं होने दिया हिंद का सिर

औरंगजेब ने पहले प्रलोभन और फिर अत्याचार कर गुरुजी पर मुस्लिम धर्म अपनाने का दबाव डाला, लेकिन महान गुरु ने हिंद का सिर नीचे नहीं होने दिया। तीनों गुरसिखों को खौफनाक यातनाएं देकर गुरु साहिब के सामने शहीद कर दिया गया। उसी दिन गुरु साहिब को भी चांदनी चौक में सिर धड़ से अलग कर शहीद कर दिया गया।

जिस शिला पर गुरु तेग बहादुर साहिब को शहीद किया गया, उस शिला को सरदार बघेल सिंह ने उखाड़कर बुंगा रामगढिया श्री अमृतसर पहुंचाया था। यह स्थान तख्त श्री केसगढ़ साहिब से 500 मीटर, बस अड्डे से 400 मीटर और गुरुद्वारा भोरा साहिब के सामने स्थित है। गुरु जी ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए देश के लिए कुर्बानी दी थी। यही कारण है कि श्री गुरु तेग बहादुर जी को हिंद की चादर कहा जाता है।

इसलिए पहनी जाती है नारंगी रंग की पगड़ी

देश में हर समुदाय के लोगों के लिए पगड़ी खास मायने रखती है। सिख समुदाय के लिए तो यह उनकी आन, बान और शान की निशानी है। यह उनके धर्म और विश्वास से जुड़ा मसला है। खालसा सिख आमतौर पर भगवा-नारंगी और नीले रंग की पगड़ी बांधते हैं।

नीला रंग लड़ाकू होने का निशानी है। नारंगी रंग बुद्धिमानी का प्रतीक है। यह रंग साहस और ज्ञान का भी प्रतीक है, जो सिख समुदाय के लिए काफी अहम है। त्याग और ताकत का भी प्रतीक रंग नारंगी ही है। इसलिए इस रंग को हमेशा नीले रंग के साथ जोड़ा जाता है। 

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