हरियाणा कांग्रेस में भी पंजाब जैसे हालात, अंजाम पहले से मालूम : डॉ. चौहान

करनाल। राष्ट्रीय से क्षेत्रीय स्तर की पार्टी बनती जा रही कांग्रेस के लिए अपने बिखरते कुनबे को एकजुट बनाए रखना मुश्किल हो रहा है। हाशिए पर सिमट चुकी कांग्रेस पार्टी में आंतरिक असंतोष  चरम पर है और पार्टी नेता प्रतिद्वंद्वी पार्टियों से लड़ने के बजाय आपसी खेमेबाजी में ही व्यस्त हैं। ऐसी स्थिति किसी बड़े जहाज के डूबने के वक्त ही उत्पन्न होती है। कुमारी शैलजा की जगह दीपेंद्र हुड्डा की हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी यही संकेत देती है। यह टिप्पणी हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने की। वह हरियाणा कांग्रेस में मचे घमासान पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।

डॉ. चौहान ने कहा कि पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच आपसी तलवारबाजी का नतीजा पार्टी ने पंजाब में देख लिया है। हरियाणा कांग्रेस भी पंजाब की राह पर ही आगे बढ़ रही है। यहां पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के बीच भी लंबे समय से तलवारें खिंची हुई हैं। कांग्रेस के लिए 'आगे कुआं, पीछे खाई' जैसी स्थिति है। कुमारी शैलजा न सिर्फ हरियाणा में कांग्रेस का एक प्रमुख दलित चेहरा हैं, बल्कि एक महिला भी हैं। एक सफल राजनीतिक समीकरण के लिए दोनों चीजों का होना जरूरी माना जाता है। दूसरी तरफ भूपिंदर सिंह हुड्डा हरियाणा कांग्रेस का एक प्रमुख जाट चेहरा हैं।

भाजपा प्रवक्ता डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि आज की तारीख में पंजाब, हरियाणा और यूपी में जाटों को नाराज करके चलना किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए जोखिम भरा काम समझा जाता है। भूपिंदर सिंह हुड्डा बहुत पहले से हरियाणा कांग्रेस की कमान अपने पाले में करने की जुगत में लगे हुए थे और अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को हरियाणा कांग्रेस की कमान दिलाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। एक सोची-समझी रणनीति के तहत कुछ समय पूर्व दीपेंद्र हुड्डा के आम आदमी पार्टी में शामिल होने की खबर फैलाई गई थी। पार्टी को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए शीर्ष नेतृत्व की तरफ से दीपेंद्र हुड्डा को हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के  संकेत पहले ही दे दिए गए थे।

डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि हुड्डा और शैलजा के दोनों विकल्पों को चुनने के अपने फायदे और नुकसान हैं। कांग्रेस हाईकमान का सिपहसालार बदलने का फैसला पार्टी के बिखरते कुनबे को रोक पाने में कितना सफल होगा, यह समय बताएगा। कांग्रेस नेतृत्व अपने 23 वरिष्ठ असंतुष्ट नेताओं के गुट से पहले से परेशान है। यह नई फेरबदल कांग्रेस के लिए कोढ़ में खाज का काम करेगी, ऐसा माना जा रहा है। इसका कांग्रेस के दलित वोट बैंक पर असर पड़ना तय है। मायावती को लेकर राहुल गांधी द्वारा किए गए दावे को बसपा सुप्रीमो पहले ही नकार चुकी हैं। इसलिए, यह अंदाज लगाना कोई बड़ी बात नहीं कि हरियाणा में भी कांग्रेस का वही हाल होना तय है जो हाल में ही पंजाब में हुआ है। उल्लेखनीय है कि कुमारी शैलजा ने गत शनिवार को सोनिया गांधी से मिलकर अपने इस्तीफे की पेशकश की थी। सोमवार को कुमारी शैलजा के इस्तीफे की खबर मीडिया में आने के बावजूद कांग्रेस की ओर से अब तक इसकी पुष्टि नहीं की गई है।

 

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